डॉ एपीजे अब्दुल कलाम जीवन परिचय (Biography), Abdul Kalam Awards (पुरस्कार), Abdul Kalam Books (किताबें)
आज हम आप सभी को एक शख्स के जीवन से जुडी जानकारियां इस लेख के माध्यम से आपके साथ शेयर करने जा रहे है। जो भारत के राष्ट्रपति भी रह चुके है साथ ही भारत के महान वैज्ञानिक थे। इन्होनें भारत के मिसाइल और परमाणु हथियार कार्यक्रमों में बहुत ही अहम भूमिका निभाई थी। इतना ही नहीं उनकी उपलब्धियों के लिए भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी नवाजा गया है. आज हम इस लेख में APJ Abdul Kalam जी के प्रारंभिक जीवन, Books, Awards, आदि के बारें में विस्तारपूर्वक जानेंगे।
A P J Abdul Kalamजो मिसाइल मैन और जनता के राष्ट्रपति नाम से भी जाने जाते हैं, भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति थे। वे भारत के पूर्व राष्टपति, जानेमाने वज्ञानिक और इंजीनियर के रूप में विख्यात थे। उन्होंने सिखाया जीवन में चाहें जैसे भी परिस्थिति क्यों न हो पर जब आप अपने सपने को पूरा करने की ठान लेते हैं तो उन्हें पूरा करके ही रहते हैं। अब्दुल कलाम जी के विचार आज भी युवा पीढ़ी को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का प्रारंभिक जीवन
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को धनुषकोडी गाँव (रामेश्वरम, तमिलनाडु) में एक मध्यमवर्ग मुस्लिम परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम जैनुलाब्दीन था वह न तो ज़्यादा पढ़े-लिखे थे, न ही उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी थी. अब्दुल कलाम जी के पिता मछुआरों को नाव किराये पर दिया करते थे।
थे। इनकी माता का नाम असीम्मा (Mother’s Name) था जो एक घरेलू गृहिणी थी।अब्दुल कलाम जी संयुक्त परिवार में रहते थे। यह स्वयं पाँच भाई बहन थे और घर में 3 परिवार रहते थे।पिता काअब्दुल कलाम के जीवन पर बहुत प्रभाव रहा। वे भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनकी लगन और उनके दिए संस्कार अब्दुल कलाम के बहुत काम आए.
प्रारंभिक शिक्षा
पाँच वर्ष की अवस्था में रामेश्वरम की पंचायत के प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश हुआ था। पांचवी कक्षा में अब्दुल कलाम के गणित के अध्यापक सुबह ट्यूशन लेते थे इसलिए वह सुबह 4 बजे ट्यूशन पढ़ने जाते थे।अब्दुल कलाम ने अपनी आरंभिक शिक्षा जारी रखने के लिए अख़बार बेचने का कार्य भी किया था।
इसके बाद डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने सेंट जोसेफ कॉलेज में एडमिशन लिया और 1954 में भौतिक विज्ञान में स्नातक किया। एपीजे अब्दुल कलाम स्नातक करने के बाद बस 1955 में मद्रास चले गए। उन्होंने यहां के इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। उनका सपना एक लड़ाकू पायलट बनना था, लेकिन, परीक्षा में उन्होंने 9वां स्थान प्राप्त किया। जबकि आईएएफ ने केवल आठ परिणाम ही घोषित किये थे। अतः वह उसमें सफल नहीं हो पाये.
Dr APJ Abdul Kalam के बारे में एक वाकया बहुत प्रसिद्ध है कि एक रॉकेट के मॉडल बनाने का प्रोजेक्ट kalam सर को मिला था और प्रोजेक्ट इंचार्ज ने रॉकेट के मॉडल मात्र तीन दिन में पूरा करने का समय दिया था और साथ में यह भी कहा था कि अगर यह मॉडल ना बन पाया तो उनकी स्कॉलरशिप रद्द हो जायेंगी।
फिर क्या था? अब्दुल कलाम जी ने न रात देखी, ना ही दिन देखा, ना भूख देखी, ना ही प्यास देखी। मात्र 24 घंटे में अपने लक्ष्य को पूरा किया और रॉकेट का मॉडल तैयार कर दिया। प्रोजेक्ट इंचार्ज को विश्वास नहीं हुआ कि यह मॉडल इतनी जल्दी पूरा हो जायेंगा। उस मॉडल को देखकर प्रोजेक्ट इंचार्ज भी आश्चर्यचकित हो गए थे। इस प्रकार डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने अपने जीवन कई चुनौतियों का डटकर सामना किया।
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का करियर
वर्ष 1963-64 में डॉ कलाम ने अमेरिकी वैज्ञानिक संगठन नासा (NASA) का भी दौरा किया। भारत के प्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक राजा रमन्ना ने जब पहला परमाणु परीक्षण किया तो उसमे कलाम जी को परीक्षण करने के लिए बुलाया था।
स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद कलाम जी ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन में एक वैज्ञानिक के रूप में शामिल हुए। इन्होनें प्रसिद्ध वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के साथ भी काम किया। 1969 में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम इसरो (ISRO) आ गये और वहां पर इन्होनें परियोजना निर्देशक के पद पर काम किया।
1970-1980 के दशक में डॉ कलाम अपने वैज्ञानिक सफलता के कारण देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिक बन गये और इसी कारण प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने केबिनेट की मंजूरी के बिना ही कुछ गोपनीय कार्यों के लिए अनुमति दी थी।
इसी पद पर काम करते समय भारत का प्रथम उपग्रह रोहिणी पृथ्वी की कक्षा में वर्ष 1980 में स्थापित किया गया। इसरो में शामिल होना डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के लिए बहुत ही गर्व की बात थी.
कलाम सर ने1974में भारत द्वारा पहले मूल परमाणु परीक्षण के बाद से दूसरी बार 1998 में भारत के पोखरण-द्वितीय परमाणु परीक्षण में एक निर्णायक, संगठनात्मक, तकनीकी और राजनैतिक भूमिका निभाई।
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम वैज्ञानिक जीवन
1972 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) से जुड़े। डॉ अब्दुल कलाम को परियोजना महानिदेशक के रूप में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह (एस.एल.वी. तृतीय) प्रक्षेपास्त्र बनाने का श्रेय हासिल हुआ। 1980 में इन्होंने रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित किया था। इस प्रकार भारत भी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बन गया।
इसरो लॉन्च व्हीकल प्रोग्राम को परवान चढ़ाने का श्रेय भी इन्हें दिया जाता है। डॉ अब्दुल कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी गाइडेड मिसाइल्स को डिजाइन किया। इन्होंने अग्नि एवं पृथ्वी जैसे प्रक्षेपात्रों को स्वदेशी तकनीक से बनाया था। डॉ अब्दुल कलाम जुलाई 1992 से दिसम्बर 1999 तक रक्षा मंत्री के विज्ञान सलाहकार तथा सुरक्षा शोध और विकास विभाग के सचिव थे।
उन्होंने रणनीतिक प्रक्षेपास्त्र प्रणाली का उपयोग आग्नेयास्त्रों के रूप में किया। इसी प्रकार पोखरण में दूसरी बार परमाणु परीक्षण भी परमाणु ऊर्जा के साथ मिलाकर किया। इस तरह भारत ने परमाणु हथियार के निर्माण की क्षमता प्राप्त करने में सफलता अर्जित की। कलाम ने भारत के विकासस्तर को 2020 तक विज्ञान के क्षेत्र में अत्याधुनिक करने के लिए एक विशिष्ट सोच प्रदान की।
यह भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे। 1982 में वे भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में वापस निदेशक के तौर पर आये और उन्होंने अपना सारा ध्यान “गाइडेड मिसाइल” के विकास पर केन्द्रित किया।
अग्नि मिसाइल और पृथ्वी मिसाइल का सफल परीक्षण का श्रेय काफी कुछ उन्हीं को जाता है। जुलाई 1992 में वे भारतीय रक्षा मंत्रालय में वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त हुये। उनकी देखरेख में भारत ने 1998 में पोखरण में अपना दूसरा सफल परमाणु परीक्षण किया और भारत परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों की सूची में शामिल हुआ।
इन्हें भारतीय जनता पार्टी समर्थित एन॰डी॰ए॰ घटक दलों ने अपना उम्मीदवार बनाया था जिसका वामदलों के अलावा समस्त दलों ने समर्थन किया। 18 जुलाई 2002 को कलाम को नब्बे प्रतिशत बहुमत द्वारा भारत का राष्ट्रपति चुना गया था और इन्हें 25 जुलाई 2002 को संसद भवन में राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई गई। इस संक्षिप्त समारोह में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, उनके मंत्रिमंडल के सदस्य तथा अधिकारीगण उपस्थित थे। इनका कार्याकाल 25 जुलाई 2007 को समाप्त हुआ।
अब्दुल कलाम व्यक्तिगत ज़िन्दगी में बेहद अनुशासनप्रिय थे। यह शाकाहारी थे। इन्होंने अपनी जीवनी विंग्स ऑफ़ फायर भारतीय युवाओं को मार्गदर्शन प्रदान करने वाले अंदाज में लिखी है। इनकी दूसरी पुस्तक ‘गाइडिंग सोल्स- डायलॉग्स ऑफ़ द पर्पज ऑफ़ लाइफ’ आत्मिक विचारों को उद्घाटित करती है इन्होंने तमिल भाषा में कविताऐं भी लिखी हैं। यह भी ज्ञात हुआ है कि दक्षिणी कोरिया में इनकी पुस्तकों की काफ़ी माँग है और वहाँ इन्हें बहुत अधिक पसंद किया जाता है।
राष्ट्रपति दायित्व से मुक्ति के बाद एपीजे अब्दुल कलाम साहब का सफ़र
एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति कार्यालय छोड़ने के बाद भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलोंग, भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद, भारतीय प्रबंधन संस्थान इंदौर व भारतीय विज्ञान संस्थान,बैंगलोर के मानद फैलो, व एक विजिटिंग प्रोफेसर बन गए।भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, तिरुवनंतपुरम के कुलाधिपति, अन्ना विश्वविद्यालय में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और भारत भर में कई अन्य शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों में सहायक बन गए। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और अन्ना विश्वविद्यालय में सूचना प्रौद्योगिकी, और अंतरराष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान हैदराबाद में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पढ़ाया।
मई 2012 में, कलाम ने भारत के युवाओं के लिए एक कार्यक्रम, भ्रष्टाचार को हराने के एक केंद्रीय विषय के साथ, “मैं आंदोलन को क्या दे सकता हूँ” का शुभारंभ किया।उन्होंने यहाँ तमिल कविता लिखने और वेन्नई नामक दक्षिण भारतीय स्ट्रिंग वाद्य यंत्र को बजाने का भी आनंद लिया।
कलाम कर्नाटक भक्ति संगीत हर दिन सुनते थे और हिंदू संस्कृति में विश्वास करते थे। इन्हें 2003 व 2006 में “एमटीवी यूथ आइकन ऑफ़ द इयर” के लिए नामांकित किया गया था।
2011 में आई हिंदी फिल्म आई एम कलाम में, एक गरीब लेकिन उज्ज्वल बच्चे पर डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के सकारात्मक प्रभाव को चित्रित किया गया। उनके सम्मान में वह बच्चा छोटू जो एक राजस्थानी लड़का है खुद का नाम बदल कर कलाम रख लेता है. 2011 में, कलाम की कुडनकुलम परमाणु संयंत्र पर अपने रुख से नागरिक समूहों द्वारा आलोचना की गई। इन्होंने ऊर्जा संयंत्र की स्थापना का समर्थन किया। इन पर स्थानीय लोगों के साथ बात नहीं करने का आरोप लगाया गया।
इन्हें एक समर्थ परमाणु वैज्ञानिक होने के लिए जाना जाता है पर संयंत्र की सुरक्षा सुविधाओं के बारे में इनके द्वारा उपलब्ध कराए गए आश्वासनों से नाखुश प्रदर्शनकारी इनके प्रति शत्रुतापूर्ण थे।
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का निधन
27 जुलाई 2015 की शाम अब्दुल कलाम साहब भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलोंग में ‘रहने योग्य ग्रह’ पर एक व्याख्यान दे रहे थे जब उन्हें जोरदार दिल का दौरा पड़ा और ये बेहोश हो कर गिर पड़े।लगभग 6:30 बजे गंभीर हालत में इन्हें बेथानी अस्पताल के आईसीयू में ले जाया गया और उसके बाद वह कभी वापस न आने के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
अपने निधन से लगभग 9 घण्टे पहले ही उन्होंने ट्वीट करके बताया था कि वह शिलोंग आईआईएम में लेक्चर के लिए जा रहे हैं।कलाम सर अक्टूबर 2015 में 84 साल के होने वाले थे।
एपीजे अब्दुल कलाम साहब का अंतिम संस्कार
मृत्यु के तुरंत बाद कलाम सर के शरीर को भारतीय वायु सेना के हेलीकॉप्टर से शिलांग से गुवाहाटी लाया गया। जहाँ से अगले दिन 28 जुलाई को पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का पार्थिव शरीर मंगलवार दोपहर वायुसेना के विमान सी-130जे हरक्यूलिस से दिल्ली लाया गया।
भारत सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति के निधन के मौके पर उनके सम्मान के रूप में सात दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की।
29 जुलाई की सुबह वायुसेना के विमान सी-130जे से भारतीय ध्वज में लिपटे कलाम के शरीर को पालम एयर बेस पर ले जाया गया जहां से इसे मदुरै भेजा गया एक संक्षिप्त समारोह के बाद कलाम के शरीर को एक वायु सेना के हेलिकॉप्टर में मंडपम भेजा गया। मंडपम से कलाम के शरीर को उनके गृह नगर रामेश्वरम एक आर्मी ट्रक में भेजा गया। अंतिम श्रद्धांजलि देने के लिए उनके शरीर को स्थानीय बस स्टेशन के सामने एक खुले क्षेत्र में प्रदर्शित किया गया ताकि जनता उन्हें आखिरी श्रद्धांजलि दे सके।
30 जुलाई 2015 को पूर्व राष्ट्रपति को पूरे सम्मान के साथ रामेश्वरम के पी करूम्बु ग्राउंड में दफ़ना दिया गया। प्रधानमंत्री मोदी, तमिलनाडु के राज्यपाल और कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्रियों सहित 3,50,000से अधिक लोगों ने अंतिम संस्कार में भाग लिया।
एपीजे अब्दुल कलाम की मृत्यु पर किसने क्या कहा
कलाम के निधन से देश भर में और सोशल मीडिया में पूर्व राष्ट्रपति को श्रद्धांजलि देने के लिये होड़ लग गयी. भारत सरकार ने कलाम को सम्मान देने के लिए सात दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह और अन्य नेताओं ने पूर्व राष्ट्रपति के निधन पर शोक व्यक्त किया।
नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “उनका (डॉ एपीजे अब्दुल कलाम साहब) निधन वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक बड़ी क्षति है। वह भारत को महान ऊंचाइयों पर ले गए। उन्होंने हमें मार्ग दिखाया।”
डॉ मनमोहन सिंह
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, “उनकी (डॉ एपीजे अब्दुल कलाम साहब) मृत्यु के साथ हमारे देश ने एक महान इन्सान को खोया है जिसने, हमारे देश की रक्षा प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए अभूतपूर्व योगदान दिया है। मैंने प्रधानमंत्री के रूप में कलाम के साथ बहुत निकटता से काम किया है। मुझे हमारे देश के राष्ट्रपति के रूप में उनकी सलाह से लाभ हुआ। उनका जीवन और काम आने वाली पीढ़ियों तक याद किया जाएगा। “
दलाई लामा
दलाई लामा ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम साहब की मृत्यु पर कहा था “एक अपूरणीय क्षति” है. उन्होंने यह भी कहा, “अनेक वर्षों में, मुझे कई अवसरों पर कलाम के साथ बातचीत करने का मौका मिला। वह एक महान वैज्ञानिक, शिक्षाविद और राजनेता ही नहीं, बल्कि वे एक वास्तविक सज्जन थे, और हमेशा मैंने उनकी सादगी और विनम्रता की प्रशंसा की है। मैंने सामान्य हितों के विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला पर हमारी चर्चाओं का आनंद लिया, लेकिन विज्ञान, अध्यात्म और शिक्षा के साथ मुख्य रूप से हमारे बीच चिंतन किया जाता था।”
बराक ओबामा
संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा,” अमेरिकी लोगों की ओर से, मैं पूर्व भारतीय राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के निधन पर भारत के लोगों के लिए अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता हूँ। वह एक महान वैज्ञानिक और राजनेता थे, कलाम ने अपनी विनम्रता से घर में और विदेशों में सम्मान कमाया और भारत के सबसे महान नेताओं में से एक बने।
भारत-अमेरिका के मजबूत संबंधों के लिए, डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने सदा वकालत की। 1962 में संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा के दौरान नासा के साथ अंतरिक्ष सहयोग को गहरा करने के लिए काम किया। भारत के 11 वें राष्ट्रपति के रूप में इनके कार्यकाल के दौरान अमेरिका-भारत संबंधों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई। उपयुक्त रूप से नामित “पीपुल्स प्रेसिडेंट” (जनता के राष्ट्रपति) ने सार्वजनिक सेवा, विनम्रता और समर्पण से दुनिया भर के लाखों भारतीयों और प्रशंसकों को एक प्रेरणा प्रदान की।”
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम साहब की किताबें
कलाम ने साहित्यिक रूप से भी अपने विचारों को चार पुस्तकों में समाहित किया है, जो इस प्रकार हैं: ‘इण्डिया 2020 ए विज़न फ़ॉर द न्यू मिलेनियम’,
‘माई जर्नी’
‘इग्नाटिड माइंड्स- अनलीशिंग द पॉवर विदिन इंडिया’।
इन पुस्तकों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इस प्रकार यह भारत के एक विशिष्ट वैज्ञानिक थे, जिन्हें 40 से अधिक विश्वविद्यालयों और संस्थानों से डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त हो चुकी है।
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम साहब को मिले पुरस्कार एवं सम्मान
कलाम के 79 वें जन्मदिन को संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाया गया था। इसके आलावा उन्हें लगभग चालीस विश्वविद्यालयों द्वारा मानद डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्रदान की गयी थीं.
भारत सरकार द्वारा डॉ एपीजे अब्दुल कलाम साहब को 1981 में पद्म भूषण और 1990 में पद्म विभूषण का सम्मान प्रदान किया गया जो उनके द्वारा इसरो और डी आर डी ओ में कार्यों के दौरान वैज्ञानिक उपलब्धियों के लिये तथा भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में कार्य हेतु प्रदान किया गया था.
1997 में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम साहब को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया जो उनके वैज्ञानिक अनुसंधानों और भारत में तकनीकी के विकास में अभूतपूर्व योगदान हेतु दिया गया था.
वर्ष 2005 में स्विट्ज़रलैंड की सरकार ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम साहब के स्विट्ज़रलैंड आगमन के उपलक्ष्य में 26 मई को विज्ञान दिवस घोषित किया। नेशनल स्पेस सोशायटी ने वर्ष 2013 में उन्हें अंतरिक्ष विज्ञान सम्बंधित परियोजनाओं के कुशल संचलन और प्रबंधन के लिये वॉन ब्राउन अवार्ड से पुरस्कृत किया।
सम्मान का वर्ष | सम्मान/पुरस्कार का नाम | प्रदाता संस्था |
2014 | डॉक्टर ऑफ़ साइन्स | एडिनबर्ग विश्वविद्यालय, यूनाइटेड किंगडम |
2012 | डॉक्टर ऑफ़ लॉज़ (मानद उपाधि) | साइमन फ़्रेज़र विश्वविद्यालय |
2011 | आइ॰ई॰ई॰ई॰ मानद सदस्यता | आइ॰ई॰ई॰ई॰ |
2010 | डॉक्टर ऑफ इन्जीनियरिंग | यूनिवर्सिटी ऑफ़ वाटरलू |
2009 | मानद डॉक्टरेट | ऑकलैंड विश्वविद्यालय |
2009 | हूवर मेडल | ए॰एस॰एम॰ई॰ फाउण्डेशन, (सं॰रा॰अमे॰) |
2009 | वॉन कार्मन विंग्स अन्तर्राष्ट्रीय अवार्ड | कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, (सं॰रा॰अमे॰) |
2008 | डॉक्टर ऑफ इन्जीनियरिंग (मानद उपाधि) | नानयांग टेक्नोलॉजिकल विश्वविद्यालय, सिंगापुर |
2008 | डॉक्टर ऑफ साइन्स (मानद उपाधि) | अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ |
2007 | डॉक्टर ऑफ साइन्स एण्ड टेक्नोलॉजी की मानद उपाधि | कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय |
2007 | किंग चार्ल्स II मेडल | रॉयल सोसायटी, यूनाइटेड किंगडम |
2007 | डॉक्टर ऑफ साइन्स की मानद उपाधि | वूल्वरहैंप्टन विश्वविद्यालय, यूनाईटेड किंगडम |
2000 | रामानुजन पुरस्कार | अल्वार्स शोध संस्थान, चेन्नई |
1998 | वीर सावरकर पुरस्कार | भारत सरकार |
1997 | इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार | भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस |
1997 | भारत रत्न | भारत सरकार |
1994 | विशिष्ट शोधार्थी | इंस्टीट्यूट ऑफ़ डायरेक्टर्स (इण्डिया) |
1990 | पद्म विभूषण | भारत सरकार |
1981 | पद्म भूषण | भारत सरकार |