डॉ होमी जहांगीर भाभा: आज हम भारत के एक ऐसे जाने – माने और महान वैज्ञानिक के जीवन के बारे जानेगे जो एक वैज्ञानिक होने के साथ-साथ स्वप्नदृष्टा भी थे। जिन्होंने भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना की थी . उन्होने चन्द वैज्ञानिकों की सहायता से मार्च 1944 में नाभिकीय उर्जा पर अनुसन्धान कर दिया था ।
उन्होंने नाभिकीय विज्ञान में तब कार्य आरम्भ किया जब अविछिन्न शृंखला अभिक्रिया का ज्ञान नहीं के बराबर था और नाभिकीय उर्जा से विद्युत उत्पादन की कल्पना को कोई मानने को तैयार नहीं था। उन्हें ‘आर्किटेक्ट ऑफ इंडियन एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम’ भी कहा जाता है। आज अगर हम आधी दुनिया को अपने परमाणु हथियारों की जद मेन कर चुके हैं तो इसके पीछे इस महान वैज्ञानिक की कड़ी मेहनत विज़न रहा है।
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वे टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च और एटोमिक एनर्जी एस्टाब्लिशमेंट, (अब भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर ) के संस्थापाक निदेशक भी रहे है। भारत के परमाणु कार्यक्रमों में इस महान वैज्ञानिक और इस instutute दोनों का रिसर्च में अहम योगदान है। 1942 में कैब्रिज विश्वविद्यालय ने एडम प्राइज़ से नवाजा गया तो 1954 में उन्हे पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया।
भारत के वैज्ञानिक सर सीवी रमन के मुंह से अपने वैज्ञानिक दोस्तों के लिए तारीफ के शब्द मुश्किल से निकलते थे… सिवाए एक अपवाद को छोड़ कर… डॉ होमी जहांगीर भाभा। सर सीवी रमन उन्हें भारत का लियोनार्डो डी विंची कहा करते थे।
तो आइए आज इस लेख के माध्यम से जानेगे महान वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा के जीवन के हर पहलू जैसे जन्म, उम्र, परिवार, शिक्षा, करियर, मृत्यु और विरासत के बारे में.
डॉ होमी जहांगीर भाभा: प्रारंभिक जीवन और परिवार
डॉ होमी जहांगीर भाभा का जन्म 30 अक्टूबर, 1909 मुम्बई के एक सभ्रांत पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम जे.एच. भाभा (जहांगीर होरमुसजी भाभा) और माँ का नाम मेहरबाई भाभा था. उनके पिता एक प्रसिद्ध वकील थे जबकि उनकी माँ एक गृहिणी थीं। उनके भाई का नाम जमशेद जहांगीर भाभा था।
डॉ होमी जे. भाभा के पिता जहाँगीर भाभा का जन्म और पालन-पोषण बैंगलोर में हुआ था। वे उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैंड गए और कानून की डिग्री के साथ भारत वापस आ गए। उन्होंने मैसूर की न्यायिक सेवा के तहत कानून का अभ्यास करना शुरू किया। इस बीच, जहाँगीर भाभा ने मेहरबाई से शादी की और वे बॉम्बे चले गए। होमी और उनके भाई जमशेद भाभा का जन्म और पालन-पोषण बॉम्बे में हुआ था।
डॉ होमी जहांगीर भाभा के दादा का नाम होर्मसजी भाभा था और वे मैसूर में शिक्षा महानिरीक्षक थे। होमी का नाम उनके दादा के नाम पर रखा गया था। होमी की मौसी का नाम मेहरबाई था जिनका विवाह दोराब टाटा से हुआ था। दोराब टाटा टाटा इंडस्ट्रीज के संस्थापक “जमशेदजी नसरवानजी टाटा” के बड़े बेटे थे.
Dr. Homi Jahangir Bhabha: Education- शिक्षा
बालक होमी के लिए पुस्तकालय की व्यवस्था घर पर ही कर दी गई थी जहाँ वे विज्ञान तथा अन्य विषयों से संबन्धित पुस्तकों का अध्ययन करते थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा कैथरैडल स्कूल में हुई और फिर आगे की शिक्षा के लिए जॉन केनन में पढने गये। शुरुआत से ही उनकी अत्यधिक रूचि भौतिक विज्ञानं और गणित में थी। इसके बाद होमी ने एल्फिस्टन कॉलेज मुंबई और रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से बीएससी की परीक्षा पास की।
वर्ष 1927 में वो इंग्लैंड चले गए जहाँ उन्होंने कैंब्रिज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। वहां उन्होंने सन् 1930 में स्नातक की उपाधि अर्जित की और सन् 1934 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से ही उन्होंने डाक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की अध्ययन के दौरान कुशाग्र बुद्धी के कारण होमी को लगातार छात्रवृत्ती मिलती रही। पीएचडी के दौरान उनको आइजेक न्यूटन फेलोशिप भी मिली। उन्हें प्रसिद्ध वैज्ञानिक रुदरफोर्ड, डेराक, तथा नील्सबेग के साथ काम करने का अवसर भी मिला।
होमी जहांगीर भाभा भौतिक विज्ञान ही पढ़ना चाहते थे इंजीनियरिंग की पढ़ाई तो उन्होंने अपने परिवार की ख्वाहिश के तहत की। फिजिक्स के प्रति उनका लगाव जुनूनी स्तर तक था इसी कारण इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान भी उन्होंने अपने प्रिय विषय फिजिक्स से खुद को जोड़े रखा। उन्होंने कैंब्रिज से ही पिता को पत्र लिख कर अपने इरादे बता दिए थे कि फिजिक्स ही उनका अंतिम लक्ष्य है।
करिअर
दुसरे विश्व युद्ध के समय डॉ.होमी जहांगीर भाभा भारत वापस चले आये। वहां से आने के बाद ये बैंगलूर के इंडियन स्कूल ऑफ़ साइंस से जुड़ गए और कुछ समय बाद इनको वहाँ के रीडर पद पद पर नियुक्त कर दिया गया। यहीं से इनका नया सफ़र शुरू हुआ और इंडियन स्कूल ऑफ़ साइंस स्कूल में ही कोस्मिक किरणों के लिए एक अलग विभाग का निर्माण किया।
कुछ समय के पश्चात सन 1941 में मात्र 31 वर्ष अवस्था में ही डॉ होमी जहांगीर भाभा को रॉयल सोसाइटी का सदस्य चुन लिया गया। जहांगीर भाभा जी इंडियन स्कूल ऑफ़ साइंस के पूर्व अध्यक्ष सी. वी. रमन जी से बहुत प्रभावित थे क्योकि उनको नोबेल प्राइज भी मिल चुका था और उनके काम करने के तरीके से ही वो काफी प्रभावित रहते थे।
वे टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च और एटोमिक एनर्जी एस्टाब्लिशमेंट, ट्रांबे (अब भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर ) के संस्थापाक निदेशक रहे। भारत के परमाणु कार्यक्रमों में इन दोनों का रिसर्च अहम योगदान है। वर्ष 1948 में डॉ. जहांगीर भाभा ने भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग की शुरुआत की, और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। इसके साथ साथ कई महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भी भाग लिया।
1955 में जेनेवा में संयुक्त राज्य संघ द्वारा आयोजित शांतिपूर्ण कार्यो के लिए परमाणु ऊर्जा का उपयोग के पहले सम्मलेन में डॉ. डॉ होमी जहांगीर भाभा को सभापति बनाया गया। वह पर कुछ वैज्ञानिको का मानना था कि विकासशील देश को पहले औधोगिक विकास करना चाहिए फिर परमाणु ऊर्जा के बारे में सोचना चाहिये। जहांगीर भाभा जी इसका बहुत ही अच्छा जवाब दिया उनको समझया कैसे कोई अल्प विकसित देश परमाणु ऊर्जा का उपयोग करके विकसित हो सकता है।
होमी जहांगीर भाभा जी ने अपने ज्ञान और अपनी मेहनत से जिमेदारी के साथ TIFR की स्थाई इमारत का ही निर्माण करवाने में अपनी पूरी भूमिका निभाई। सन 1949 तक केनिलवर्थ का संस्थान छोटा पड़ने लगा। अतः इस संस्थान को प्रसिद्ध “गेट वे ऑफ़ इंडिया” के पास एक इमारत में स्थानांतरित कर दिया गया, जो उस समय “रायल बाम्बे यॉट क्लब” के अधीन थी। संस्थान का कुछ कार्य तब भी केनिलवर्थ में कई वर्षों तक चलता रहा।
आज ‘परमाणु ऊर्जा आयोग’ का कार्यालय ‘गेट वे ऑफ़ इंडिया’ के पास इसी इमारत “अणुशक्ति भवन”(ATOMIC POWER HOUSE) में कार्यरत है जो “ओल्ड यॉट क्लब” के नाम से जाना जाता है। संस्थान का कार्य इतनी तेजी से आगे बढ़ने लगा था कि “ओल्ड यॉट क्लब” भी जल्दी ही छोटा पड़ने लगा। डॉ होमी जहांगीर भाभा पुनः स्थान की तलाश में लग गए। अब वह ऐसी जगह चाहते थे जहाँ संस्थान की स्थायी इमारत बनायी जा सके।
उपलब्धियां
जब अपना देश आजाद हुआ तो होमी जहांगीर भाभा ने दुनिया भर में काम कर रहे भारतीय वैज्ञानिकों से अपील की कि वे अपने भारत लौट आएं। उनकी अपील का असर भी हुआ और कुछ वैज्ञानिक भारत लौट आये। इन्हीं में एक थे मैनचेस्टर की इंपीरियल कैमिकल कंपनी में काम करने वाले होमी नौशेरवांजी सेठना। अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन करने वाले सेठना में भाभा को काफी संभावनाएं दिखाई दीं।
ये दोनों वैज्ञानिक भारत को परमाणु शक्ति संपन्न बनाने के अपने कार्यक्रम में जुट गए। यह कार्यक्रम मूल रूप से डॉ होमी जहांगीर भाभा की ही देन था, लेकिन यह सेठना ही थे, जिनकी वजह से डॉ॰ भाभा के निधन के बावजूद न तो यह कार्यक्रम रुका और न ही इसमें कोई बाधा आई।
उनकी इसी लगन का नतीजा था कि 1974 में सेठना ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को बताया कि उन्होंने शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट की तैयारियां पूरी कर ली है। यह भी पूछा कि क्या वे इस सिस्टम को शुरू कर सकते हैं? इसके साथ ही उन्होंने यह भी बता दिया कि एक बार सिस्टम शुरू होने के बाद इसे रोकना संभव नहीं होगा, ऐसे में अगर वे मना कर देंगी तो उसे नहीं सुना जा सकेगा क्योंकि तब विस्फोट होकर ही रहेगा।
इंदिरा गांधी की हरी झंडी मिलते ही तैयारियां शुरू हो गई। अगले ही दिन, 18 मई को सेठना ने कोड वर्ड में इंदिरा गांधी को संदेश भेजा- बुद्ध मुस्कराए। भारत का यह परमाणु विस्फोट इतना गोपनीय था। डॉ होमी जहांगीर भाभा ने डॉ़ सेठना को भारत लौटने के बाद बहुत सोच-समझ कर केरल के अलवाए स्थित इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड का प्रमुख बनाया था,
वे परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के प्रबल पक्षधर थे। आज अगर भारत को एक परमाणु शक्ति के रूप में दुनिया भर में मान्यता मिली है, तो इसमें डॉ होमी जहांगीर भाभा के बाद सबसे ज्यादा योगदान डॉ॰ सेठना का ही है। डॉक्टर भाभा के नेतृत्व में भारत में एटॉमिक एनर्जी कमीशन की स्थापना की गई। उनके एटॉमिक एनर्जी के विकास के लिए समर्पित प्रयासों का ही परिणाम था कि भारत ने वर्ष 1956 में ट्रांबे में एशिया का पहले एटोमिक रिएक्टर की स्थापना की गई। केवल यही नहीं, डॉक्टर भाभा वर्ष 1956 में जेनेवा में आयोजित यूएन कॉफ्रेंस ऑन एटॉमिक एनर्जी के चेयरमैन भी चुने गए थे।
सम्मान
रॉयल सोसाइटी का सदस्य चुने गए | 1941 |
पाँच बार भौतिकी के लिए नोबेल पुरस्कार | |
एडम्स पुरस्कार | 1943 |
हॉपकिन्स पुरस्कार | 1948 |
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने डॉ. ऑफ सांइस | 1959 |
पद्मभूषण | 1954 |
खाने के शौकीन
डॉ होमी जहांगीर भाभा लीक से हटकर चलने में यकीन रखते थे। वाकपटुता में उनका कोई सानी नहीं था और न ही आडंबर में उनका यकीन था। इंदिरा गांधी के वैज्ञानिक सलाहकार रहे प्रोफेसर अशोक पार्थसारथी कहते हैं, “जब वो 1950 से 1966 तक परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष थे, तब वो भारत सरकार के सचिव भी हुआ करते थे। वो कभी भी अपने चपरासी को अपना ब्रीफकेस उठाने नहीं देते थे। खुद उसे लेकर चलते थे जो कि बाद में विक्रम साराभाई भी किया करते थे।
वो हमेशा कहते थे कि पहले मैं वैज्ञानिक हूँ और उसके बाद परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष। एक बार वो किसी सेमिनार में भाषण दे रहे थे तो सवाल जवाब के समय एक जूनियर वैज्ञानिक ने उनसे एक मुश्किल सवाल पूछा। डॉ होमी जहांगीर भाभा को ये कहने में कोई शर्म नहीं आई कि अभी इस सवाल का जवाब उनके पास नहीं है। मैं कुछ दिन सोच कर इसका जवाब दूंगा।”
बहुत कम लोगों को पता है कि डॉ होमी जहांगीर भाभा खाने के बहुत शौकीन थे। इंदिरा चौधरी याद करती हैं कि परमाणु वैज्ञानिक एमएस श्रीनिवासन ने उनसे बताया कि एक बार वॉशिंगटन यात्रा के दौरान भाभा का पेट खराब हो गया। डॉक्टर ने उन्हे सिर्फ दही खाने की सलाह दी। भाभा ने पहले पूरा ग्रेप फ्रूट खाया, पोच्ड अंडों, कॉफी और टोस्ट पर हाथ साफ किया और फिर जाकर दही मंगवाई और वो भी दो बार और ये तब जब उनका पेट खराब था।
डॉ होमी जहांगीर भाभा की मृत्यु
24 जनवरी 1966 को मुंबई से न्यूयार्क जा रहा एक विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिससे विमान में सवार जहांगीर भाभा सहित 117 लोगों की मौत हो गई। जहांगीर भाभा की मौत को लेकर आज तक रहस्य बना हुआ है कि कहीं इस घटना के पीछे कोई साजिश तो नहीं थी। कई लोगों का मानना है कि विमान दुर्घटना के पीछे सीआईए का हाथ था, क्योंकि अमेरिका नहीं चाहता था कि भारत परमाणु शक्ति संपन्न देश बने।
Note–(यहां दी गई जानकारियां इन्टरनेट और किताबों पर आधारित हैं, यहाँ दी गई जानकारी प्रमाणित नहीं है. लेकिन हम सब ने कोशिश की है कि आप तक जानकारी सटीक और सही पहुंचे, यदि हमसे कोई त्रुटि होती है तो हम क्षमाप्राथी है.)